सफर - मौत से मौत तक….(ep-27)
नंदू और उसका बेटा समीर और राजू और उसकी बेटी मन्वी चारो छत में कुर्सी लगाकर बैठे थे, हँसी खुशी बिखरी हुई थी, हर चेहरे में एक मुस्कान थी वो चाहे असली हो या नकली मगर कहने के लिए सब मुस्करा रहे थे, मगर कोई था जो बहुत उदास था, चारो कुर्सियों से अलग थलग बैठे नंदू अंकल की आंखे बहुत नम थी, वो मायूस चेहरे से खुद के हंसते चेहरे को देख रहे था। कभी समीर के आंखों के फरेब को निहार रहे थे जो पहले कभी नही दिखा, और कभी राजू के चेहरे में दोस्ती के भाव को टटोलता तो कभी मन्वी के दिल की तमन्नाओं के पूरे होने की आश, सपनो के शहर में जगमगाते दीपक की बढ़ती घटती रोशनी को देखता, और फिर अपने जीवन को दूर के नजर से देखता तो उसमे सिर्फ अंधकार ही नजर आता।
इधर उधर की बाते खत्म करके नंदू मुद्दे पर आया।
"समीर बेटा! तुम सोच रहे होंगे कि ऐसी क्या बात है जो छत में आ गए, इतनी जरूरी बात भी क्या है?…….तो अब जो मैं कहना चाह रहा हूँ उसपर तुरन्त कुछ बोलना मत,बस शांति से ध्यान से सुनना और बात को समझना" नंदू ने कहा ही था कि समीर बीच मे बोल पड़ा। :- "मैं जानता हूँ पापा आप किस विषय में बात करना चाहते है, और आप भी जानते है मेरा जवाब क्या होगा, फिर मुझे क्यो कोई फर्क पड़ेगा, आपको जो बोलना है बोलिये….जब मेरी बारी आएगी बोलने की तो बता देना।"
मन्वी के समझ में समीर के कहने का मतलब तो समझ नही आया, लेकिन कुछ गड़बड़ जरूर महसूस हो रहा था।
नंदू अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला- "मैंने और राजू ने सोच समझकर ये फैसला लिया है कि……."
तभी समीर एक बार फिर मुस्कराते हुए बोला- "फैसला….बिना किसी दलील के , बिना किसी पेशी के, बिना किसी सलाह मशवरे के , ये कैसा फैसला लिया है, मैं सुनने को बैताब हूँ" समीर बीच मे बोल पड़ा, और समीर इस तरह मुस्कराकर बोल रहा था कि मजाक में वो बात टाल दे, समीर इस वक्त झगड़कर किसी की बेइजत्तीनही करना चाहता था।
"ये जिंदगी का मुकदमा है बेटा, यहां कोर्ट-कचहरियां नही लगा करती, यहाँ सीधे फैसले होते है जो हमारे होते है लेकिन उनमें वश सिर्फ किस्मत का चलता है,ना किस्मत में लिखे हुए को हमारे फैसले बदल सकते है,ना मिटा सकते है" नंदू बोला।
"तो ये पंचायत क्यो बिठा दी छत में, अगर फैसला किस्मत का है तो जो मेरी किस्मत में होना होगा वो अंदर बैठकर भी हो जाएगा, इस फिजूल की पंचायत से के बिना ही।" समीर बोला।
"मैने कहा था ना बीच मे मत बोलना….मेरी बात पूरी होने तक तुम चुप रहोगे?" नंदू ने कहा।
"लेकिन मुझे पता है, आप लोग मेरी शादी की बात चलाना चाहते है, लेकिन मैं अभी शादी नही करना चाहता" समीर ने कहा।
"कल तो बोल रहे थे की शादी करना चाहते हो….मैंने नही शादी का मामला तो तुमने ही छेड़ा है" नंदू बोला।
"हाँ लेकिन…. इतनी जल्दी क्यो? और वैसे भी मैने शादी की बात नही की थी, आपका ख्याल रखने की बात चल रही थी, शादी का ख्याल आपके दिमाग मे आया" समीर ने बहुत ही नरमी से कहा।
"अभी कौन सा बारात लेकर आ गए है जो इतनी जल्दी बोल रहा…… अभी बस देखना सुनना है, उसके बाद लड़का लड़की एक दूसरे को पसंद करेंगे तब ही शादी होगी, और एक बार तेरी शादी तय कर लूँ, उसके बाद जब कोर्ट से तारीख मिलेगी उस दिन मुकदमा चला देंगे" नंदू बोला।
नंदू की बात सुनकर राजू हँस पड़ा और नंदू से कहने लगा- "भाईसाहब , ये वकील साहब को अदालत, पेशी, मुकदमा वाली भाषा ही पसंद है क्या, अगर आप लोग बुरा ना माने तो एक बयान में भी दे दूँ"
"अरे बोलिये ना अंकल! आपकी ही कमी थी… मुझे ऐसा लग ही नही रहा कि मेरे सबूत और गवाही की कोई कद्र करेगा, क्योकि पापा तो हमेंशा अपने मन की ही करते है, और करेंगे भी" समीर ने कहा।
"तेरे पापा अपने ही मन की करते है, लेकिन इनके कोई फैसला गलत नही होता….मैं खुद कोई भी काम हो इनसे सलाह जरूर लेता हूँ" राजू बोला।
मन्वी चुपचाप बैठी थी सबकी बात सुन और समझ रही थी।
"दुसरो को सलाह देना और खुद पर अप्लाई करने में बहुत फर्क है अंकल जी…. मैं भी आफिस में सुबह से शाम तक सौ-पचास क्लाइंट को सलाह देता हूँ, जमीन जायजाद के मसले, तलाक के मामले, और बहू के सताए सांस ससुर के दर्द तो कभी कभी किसी की शादी भी करा देते है हम…. और एक बात जो मैने आजमाई है सत्तर फीसदी लोग जो तलाक के लिए आते है उनकी शादी अरेंज मैरिज होती है , मतलब मां बाप के पसन्द से शादी….और वो एक दूसरे को खुश नही रख पाते, एक दूसरे से खुश नही रहते, और मामला तलाक तक पहुंच जाता है" समीर बोला
"आज का जमाना वो नही है बेटा की मां बाप में जो पसंद किया उससे आंख बंद करके शादी कर लेते है बच्चे, लड़का लड़की को पूरी छूट दी जाती है एक दूसरे को जानने की, उन्हें अकेले बात करने छोड़ने का खास वजह यही होती है कि दोनो सब खुलकर अपने बारे में एक दूसरे को बताए ताकि वो सोच समझकर सही फैसला ले सके" राजू ने कहा।
"अच्छा दस मिनट अकेले बात करने छोड़ने पर एक दूसरे से खुलकर कौन बात कर लेगा….इतनी देर बात करके फैसला करना तो छोड़ो इतनी देर में पहले कौन बात करेगा ये फैसला भी नही कर पाते लोग" समीर ने कहा।
"बेटा! एक बात बता….शादी तय होने के बाद शादी होने तक के बीच मे जो हर घंटे घंटे में फोन करके डेढ़ डेढ़ घंटे बात करते है लड़के लडकिया….क्या वो एक दूसरे को समझने के लिए काफी नही है, तब कौन सा शादी हो चुकी होती है, अगर ऐसा लगता है कि लड़का या लड़की शादी लायक नही है तो मना भी किया जा सकता है शादी के लिए" नंदू ने कहा।
"पहले तो आपकी बात बेबुनियाद है, तर्कहीन है….हर एक घंटे में फोन करने वाला शख्स डेढ़ घंटे कैसे बात कर सकता है" समीर ने मुस्कराते हुए कहा।
उसकी इस बात पर मन्वी भी मुस्करा उठी, मन्वी को समझ नही आ रहा था कि ये झगड़ा कर रहे है या चर्चा….बिल्कुल स्कूल वाली मीटिंग लग रही थी जो प्रिंसिपल सर् के साथ सभी अध्यापकों की होती है, और मीटिंग हो रही हो और बहसबाजी ना हो ,भला ये कैसे हो सकता था। मन्वी इसलिए शांत थी। क्योकि जिस स्कूल में अभी वो पढ़ाती थी उस स्कूल में अक्सर टीचर के साथ ऐसे बहस होती थी। समीर मन्वी को अंग्रेजी में दो शब्द के पीछे तंज कस चुका था ग्रीन टी और हरी चाय के पीछे, लेकिन वो ये नही जानता
था कि जिस प्राइवेट स्कूल में वो टॉप करके आया है उसी स्कूल में अंग्रेजी और गणित पढ़ाती है मन्वी….
समीर ने हंसते हुए मन्वी की तरफ देखा और कहा- "आप ही समझाओ ना…. हाँ माना हम दोस्त थे, लेकिन इसका ये मतलब नही की हमारी शादी हो जाये…."
मन्वी भी समीर की तरफ देख रही थी, एक पल के लिए दोनो की आंखों से आंखे टकराई, लेकिन टकराव ज्यादा देर टिक नही पाया, समीर ने जब देखा कि मन्वी उसकी आँखों मे झांकने की कोशिश कर रही है तो उसने अपनी पलके झुका ली। लेकिन मन्वी को तो आदत थी क्लास में बच्चो को पढ़ाते समय उनपर नजर रखना, और गलती करने वाले को घूरना, और जब कोई झूठ बोले तो उसकी आंखों में झांकना और झूठ को पकड़ लेना….मन्वी से पूरी क्लास डरती थी लेकिन ताज्जुब ये था आज तक किसी बच्चे पर हाथ नही उठाया था, एक तो नजरो से डराना, फिर अपने बातों से पिघलाना….और जब ना सुधरे तो ढेर सारा होमवर्क दे देना ही मन्वी का हथियार था। और आज समीर का पलके झुकाना भी अपने झूठ पर पर्दा डालना जैसा था, जो मन्वी को समझ आ रहा था।
मन्वी ने समीर की बात सुनकर जवाब दिया- "मैं क्या समझाऊंगी….मुझे खुद कुछ भी समझ नही आ रहा है।, मुझे समझ नही आएगा तो मैं इन्हें क्या समझाऊंगी"
मन्वी को अभी तक यही लग रहा था कि शायद समीर किसी से शादी नही करना चाहता, वो मुझे नही, इस शादी को रीजेक्ट कर रहा है।
"मैं सिर्फ इतना कह रहा हूँ कि आई कैन नॉट मैरी यु, आई डू नॉट मैरी..… (मैं तुमसे शादी नही कर सकता, मुझे नही करनी शादी।)
" आई एम नॉट फोरसिंग यु टू गेट मैरिज, यू विल बी गिबन टाइम टू थिंक, बट नाउ द डिबेट विल नॉट मैटर, यू लिसन टू यूअर हार्ट, पापा एंड अंकलजी आर लिसनिंग टू हर हार्ट आर डिसाइडिंग अवर मैरिज"(मैं आपको शादी के लिए जबरदस्ती नही कर रही, आपको वक्त दिया जाएगा सोचने के लिए, लेकिन अभी बहस से कोई फर्क नही पड़ेगा, आप अपने दिल की सुनो पापाजी और चाचाजी भी अपनी दिल की सुनकर ही हमारी शादी तय कर रहे है") मन्वी ने एक सांस में बिना रुके इतने प्यारे उच्चारण के साथ अंग्रेजी बोली कि समीर ने दांतो तले उंगली दबा ली।
"आपको इतनी अच्छी अंग्रेजी कैसे आती है?" समीर ने सवाल किया।
"कैसे?... मतलब!" मन्वी बोली।
"मेरा मतलब आप तो सरकारी स्कूल में पढ़ते थे, और वो स्कूल हिंदी मीडियम हुआ करता था" समीर बोला।
"हाँ हिंदी मीडियम होता था, लेकिन एक सब्जेक्ट तो इंग्लिश होता ही था। और पढ़ने के लिए स्कूल कैसा था, कौन सा मिडीयम था, प्राइवेट था या सरकारी से क्या लेना देना" मन्वी में कहा।
तभी राजू बड़े ही गर्व से बोल पड़ा- "अरे स्कूल में अंग्रेजी की मास्टरनी है वो, अंग्रेजी में डिप्लोमा किया है उसने……" और किस स्कूल में पता है??"
"किस स्कूल में" हैरानी से समीर ने पूछा।
"पब्लिक स्कूल में , जहां तुम पढ़ते थे" नंदू ने समीर के सवाल का जवाब दिया।
"मन्वी ने मुस्कराते हुए कहा- "आज भी बहुत से पुराने अध्यापक बहुत तारीफ करते है आपकी, लेकिन उस टाइम पर आपकी हरकते देखकर लगता नही था क्लास की क्लास टॉपर आप रहते होंगे, आज भी आपकी पढ़ाई की तारीफ और अंकलजी की हीम्मत को दाद देकर बाकी बच्चो को पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है।" मन्वी ने कहा।
"अच्छा..और राणा सर् कैसे है?" समीर ने यूंही जल्दबाजी में सवाल किया ।
राणा सर का नाम सुनते ही मन्वी के चेहरे की रौनक ही गायब हो गयी।
कहानी जारी है
अगले भाग में देखेंगे- राणा सर् का नाम मन्वी को सदमा क्यो दे गया…….😂😂कोई बड़ा सस्पेंस नही मिला तो छोटा ही सही….😂
Swati chourasia
10-Oct-2021 08:43 PM
Very nice
Reply
Shalini Sharma
22-Sep-2021 11:55 PM
Nice
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